धरम राज दुबे को कौन नहीं जानता
गुलाबी सर्दी आ चुकी है। सूर्योदय हो रहा है। नवंबर का महीना है।गंगा के ऊपर धुंध धीरे-धीरे छंट रही है। कानपुर में गंगा किनारे गुप्तार घाट के मंदिरों में भक्तों का आना शुरू हो गया है।

ठीक सात बजे, सफेद कुर्ता और पायजामा पहने, औसत से थोड़ा कम कद और गठीले शरीर का एक वृद्ध व्यक्ति गुप्तार घाट की सीढ़ियां उतर रहे हैं।
गुप्तार घाट पर लगभग हर कोई 70 साल के धरम राज दुबे को जानता है
धरम राज दूबे पेशे से वकील हैं और पिछले 34 साल से अपनी निजी नाव में सवार होकर, कई घंटे उसे खेकर, कई किलोमीटर दूर गंगा के एक ऐसे तट पर जाते हैं जहां पानी साफ हो और वो नहा सकें।
स्नान 1970 से गंगा में ही करता हूं
मैं कानपुर आया और गंगा में नहाना शुरू किया, और तब से गंगा में नहाने की मेरी आदत पड़ गयी। गंगा स्नान मेरी दिनचर्या में शामिल हो गया है।
घाट पर दूबे कुर्ता पायजामा उतारकर एक केसरिया रंग की धोती पहनते हैं और अपनी नाव में सवार हो जाते हैं।
जब कानपुर की तरफ से बहने वाला पानी गंदा होने लगा, तब नाव लेकर गंगा की दूसरी तरफ जाना शुरू कर दिया। 1980 में 13000 रुपए में मैंने नाव खरीद ली। तब से लेकर आज तक अगर मैं कानपुर शहर में हूं तो गंगा में ही नहाता हूं, चाहे बरसात में गंगा में सैलाब आया हो या फिर सर्दियों में गंगा पूरी तरह से कोहरे से ढकी हो। मैं सुबह 7 से 10 बजे तक गंगा मैय्या की गोद में रहता हूं।
आम लोग और गंगा की सफाई

गुप्तार घाट लौटते समय दूबे गंगा में बह रहे कचरे जैसे फूल, नारियल, प्लास्टिक की थैलियां अपनी नाव में जमा कर लेते हैं। गुप्तार घाट पहुंच कर वे कचरा एक निश्चित स्थान पर डाल देते हैं जहां से सफाईकर्मी उसे उठा लेते हैं।
एक एकांत जगह पर जाकर गंगा में नहाता और पूजा करता हूं। लौटते समय गंगा में से कचरा उठा लेता हूं। वह क्रम आज भी चल रहा है।"
कुछ साल पहले मैं गंगा के उद्गम स्थल गंगोत्री भी गया था। पर जो आनंद कानपुर में मिलता है वह मुझे गंगोत्री में नहीं मिला।"
लोग गंगा में कचरा न डालकर, गंगा किनारे शौच न कर और नहाते समय साबुन का इस्तेमाल न कर गंगा को प्रदूषित होने से बचा सकते हैं। more >>
गुलाबी सर्दी आ चुकी है। सूर्योदय हो रहा है। नवंबर का महीना है।गंगा के ऊपर धुंध धीरे-धीरे छंट रही है। कानपुर में गंगा किनारे गुप्तार घाट के मंदिरों में भक्तों का आना शुरू हो गया है।
ठीक सात बजे, सफेद कुर्ता और पायजामा पहने, औसत से थोड़ा कम कद और गठीले शरीर का एक वृद्ध व्यक्ति गुप्तार घाट की सीढ़ियां उतर रहे हैं।
गुप्तार घाट पर लगभग हर कोई 70 साल के धरम राज दुबे को जानता है
धरम राज दूबे पेशे से वकील हैं और पिछले 34 साल से अपनी निजी नाव में सवार होकर, कई घंटे उसे खेकर, कई किलोमीटर दूर गंगा के एक ऐसे तट पर जाते हैं जहां पानी साफ हो और वो नहा सकें।
स्नान 1970 से गंगा में ही करता हूं
मैं कानपुर आया और गंगा में नहाना शुरू किया, और तब से गंगा में नहाने की मेरी आदत पड़ गयी। गंगा स्नान मेरी दिनचर्या में शामिल हो गया है।
घाट पर दूबे कुर्ता पायजामा उतारकर एक केसरिया रंग की धोती पहनते हैं और अपनी नाव में सवार हो जाते हैं।
जब कानपुर की तरफ से बहने वाला पानी गंदा होने लगा, तब नाव लेकर गंगा की दूसरी तरफ जाना शुरू कर दिया। 1980 में 13000 रुपए में मैंने नाव खरीद ली। तब से लेकर आज तक अगर मैं कानपुर शहर में हूं तो गंगा में ही नहाता हूं, चाहे बरसात में गंगा में सैलाब आया हो या फिर सर्दियों में गंगा पूरी तरह से कोहरे से ढकी हो। मैं सुबह 7 से 10 बजे तक गंगा मैय्या की गोद में रहता हूं।
आम लोग और गंगा की सफाई
गुप्तार घाट लौटते समय दूबे गंगा में बह रहे कचरे जैसे फूल, नारियल, प्लास्टिक की थैलियां अपनी नाव में जमा कर लेते हैं। गुप्तार घाट पहुंच कर वे कचरा एक निश्चित स्थान पर डाल देते हैं जहां से सफाईकर्मी उसे उठा लेते हैं।
एक एकांत जगह पर जाकर गंगा में नहाता और पूजा करता हूं। लौटते समय गंगा में से कचरा उठा लेता हूं। वह क्रम आज भी चल रहा है।"
कुछ साल पहले मैं गंगा के उद्गम स्थल गंगोत्री भी गया था। पर जो आनंद कानपुर में मिलता है वह मुझे गंगोत्री में नहीं मिला।"
लोग गंगा में कचरा न डालकर, गंगा किनारे शौच न कर और नहाते समय साबुन का इस्तेमाल न कर गंगा को प्रदूषित होने से बचा सकते हैं। more >>
No comments:
Post a Comment